Saturday, April 4, 2015

धार्मिक मान्यता बनाम कर्तव्य



         

धार्मिक मान्यता बनाम कर्तव्य

डॉ विवेक आर्य

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस कुरियन जोसफ द्वारा चीफ जस्टिस श्री दत्तू द्वारा गुड फ्राइडे (Good Friday) के दिन आयोजित बैठक जिसे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा सम्बोधित करना था का बहिष्कार कर दिया गया एवं प्रधान मंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर यह सलाह दी गई कि ईसाईयों के त्योहार के दिन वह किसी भी आयोजन में भाग नहीं ले सकते और यह भी कहा गया की इस प्रकार के आयोजन होली, दिवाली, ईद आदि के दिन आयोजित नहीं होते तो फिर गुड फ्राइडे के दिन क्यों किया गया। भारतीय  संविधान हर किसी को उसकी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने का अधिकार प्रदान करता हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दत्तू द्वारा कर्तव्य को धार्मिक मान्यताओं पर प्राथमिकता देने की सलाह कुरियन जी को दी गई।

जस्टिस कुरियन जोसफ के पत्र की समीक्षा

1. पत्र को सार्वजानिक कर मीडिया में प्रचारित कर जस्टिस कुरियन क्या यह दिखाने का प्रयास नहीं कर रहे कि भारत अभी तक सेक्युलर था मगर जबसे मोदी जी की सरकार सत्ता में आई है, तबसे अल्पसंख्यक विशेष रूप से ईसाईयों को प्रताड़ित किया जा रहा हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज के साथ यह बर्ताव है तो बाकि का क्या हाल होगा। कुरियन जी इस पत्र को व्यक्तिगत रूप से भी भेज सकते थे। क्या यह जनता द्वारा बहुमत से चुनी गई देश की सरकार की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि ख़राब करने का सुनियोजित षड्यंत्र नहीं प्रतीत होता वह भी उस व्यक्ति द्वारा जिसने पद और गोपनीयता की शपथ ली हैं।

2. धार्मिक मान्यता बड़ी या कर्तव्य बड़ा यह जानना अत्यंत आवश्यक हैं। यह भ्रान्ति इसलिए पैदा हुई क्यूंकि लोग धर्म के स्थान पर मत की मूलभूत मान्यताओं को ही धर्म समझ बैठे हैं। धर्म व्यक्ति को श्रेष्ठ कर्म करने का सन्देश देता है जबकि मत उसकी मान्यताओं का पालन करने पर अधिक जोर देता हैं। अगर मान्यता को कर्तव्य से ऊपर रखा जायेगा तब तो देश में अराजकता फैल जाएगी। देश की सेना में 90% सैनिक हिन्दू हैं। क्या वे दिवाली, होली पर देश की सीमाओं को असुरक्षित छोड़कर दिवाली बनाने के लिए अपने अपने घर आ जाते हैं? इसी प्रकार से देश में विभिन्न अस्पतालों में कार्य कर रहे 90% डॉक्टर हिन्दू है क्या वे दीवाली, होली की रात अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते अथवा सभी अस्पतालों पर ताला लगाकर मरीजों को उन्हीं के हाल पर छोड़कर अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने बैठ जाते हैं? इसी प्रकार अपने कर्तव्य का पालन पुलिस, बिजली-पानी विभाग, फायर ब्रिगेड, ट्रैफिक व्यवस्था सँभालने वाले, सभी आपत्कालीन सेवाएं, रात दिन कार्य करने वाले वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता से लेकर देश की सुरक्षा से सम्बंधित सभी अधिकारी निभाते है। सत्य यह हैं की वे कर्तव्य रूपी स्वधर्म का पालन कर रहे होते हैं जो मत-मतान्तर कि मान्यताओं से बहुत ऊपर एवं मानने योग्य भी हैं।

3.  जहाँ तक मोदी जी की सरकार का प्रश्न हैं कुरियन जी यह क्यों भूल गए की मोदी जी भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री है जिन्होंने दिवाली की रात अहमदाबाद में स्वपरिजनों के साथ नहीं अपितु बाढ़ पीड़ित कश्मीर के मुसलमानों के साथ राहत कार्य का निरिक्षण करते हुए गुजारी। देश के कर्मशील प्रधानमंत्री से प्रेरणा लेने के स्थान पर आप उनकी सार्वजानिक आलोचना पर उत्तर आये यह अपनी संक्रिण मानसिकता का बोधक हैं। यही नहीं मोदी जी द्वारा सरकारी छुट्टी वाले दिन जैसे वाल्मीकि दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि पर सभी अधिकारीयों को साथ लेकर स्वच्छ भारत अभियान के लिए तो कार्य किया गया उसकी आप अनदेखी कैसे कर सकते हैं।

4. आपने कभी सुना की पूर्व राष्ट्रपति एवं भारत के महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम आज़ाद जिस समय भारत को सुदृढ़ एवं सुरक्षित बनाने के लिए विभिन्न मिसाइलों पर शोध कर रहे थे तब वह रात दिन कार्य न करके पांच बार नमाज के लिए विराम लेते थे। नहीं सुना होगा क्यूंकि अगर वह अपनी निजी मान्यता को अपने कर्तव्य से ऊपर रखते तो वह कभी भी महान वैज्ञानिक नहीं बन पाते। इसलिए आपको नेक सलाह है की आप अपना ध्यान अदालतों में लंबित करोड़ो मामलों का निपटारा करने, न्याय प्रक्रिया से भ्रष्टाचार को दूर करने, जनता का विश्वास जीतने में लगायेंगे। इसी में राष्ट्रहित हैं।

जिस भी पाठक को यह समीक्षा पसंद आये तो इस समीक्षा को सोशल मीडिया में शेयर अवश्य करे जिससे की छदम सेक्युलरवादियों को यथोचित उत्तर मिले।

             (मोदी जी जैसे कर्मशील प्रधानमंत्री जी का प्रशंसक)
                                                                                                                                डॉ विवेक आर्य 

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