Wednesday, March 11, 2015

अलगाववादी सिखों को गुरु ग्रन्थ साहिब की सीख


(हिन्द की चादर गुरु तेगबहादुर जी) 

अलगाववादी सिखों को गुरु ग्रन्थ साहिब की सीख

हमारे कुछ सिख भाई पाकिस्तानी मुसलमानों के बहकावें में आकर अपने आपको हिन्दू धर्म से अलग दिखाने की होड़ में "हम हिन्दू नहीं हैं" , "सिख गौ को माता नहीं समझते", "सिख मुसलमानों के अधिक निकट हैं क्यूंकि दोनों एक ईश्वर को मानते है" जैसी बयानबाजी कर हिन्दुओं और सिखों के मध्य दरार डालने का कार्य कर रहे है। हमें यह कहते हुए खेद हो रहा हैं की अंग्रेजों की फुट डालों और राज करो की नीति का स्वार्थ एवं महत्वकांक्षाओं के चलते पहले के समान अनुसरण हो रहा है। हम यह क्यों भूल जाते हैं की एक काल में पंजाब में हर परिवार के ज्येष्ठ पुत्र को अमृत चखा कर सिख अर्थात गुरुओं का शिष्य बनाया जाता था जिससे की यह देश, धर्म और जाति की रक्षा का संकल्प ले। यह धर्म परिवर्तन नहीं अपितु कर्त्तव्य पालन का व्रत ग्रहण करना था। खेद हैं हम जानते हुए भी न केवल अपने इतिहास के प्रति अनजान बन जाते हैं अपितु अपने गुरुओं की सीख को भी भूल जाते है।
                                             गुरु साहिबान बड़े श्रद्धा भाव से सिखों को हिन्दू धर्म रक्षा का सन्देश देते है। गुरु नानक जी से लेकर गुरु गोविन्द सिंह जी सब हिन्दू धर्म को मानने वाले थे एवं उसी की रक्षा हेतु उन्होंने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। उदहारण के लिए देखिये पंथ प्रकाश संस्करण 5 म पृष्ठ 25 में गुरुनानक देव जी के विषय में लिखा हैं-

 पालन हेत सनातन नेतै, वैदिक धर्म रखन के हेतै।
 आप प्रभु गुरु नानक रूप, प्रगट भये जग मे सुख भूपम्।।
 अर्थात सनातन सनातन वैदिक धर्म की रक्षा के लिए भगवान गुरु नानक जी के रूप में प्रकट हुए।

गुरु तेगबहादुर जी के वचन बलिदान देते समय पंथ प्रकाश में लिखे है-
हो हिन्दू धर्म के काज आज मम देह लटेगी।
अर्थात हिन्दू धर्म के लिए आज मेरे शरीर होगा।

 औरंगज़ेब ने जब गुरु तेगबहादुर से पूछा की आप किस धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि देने के लिए तैयार हो रहे है तो उन्होंने यह उत्तर दिया की-
                       
 आज्ञा  जो करतार की, वेद चार उचार,धर्म तास को खास लख,हम तिह करत प्रचार।
  वेद विरुद्ध अधर्म जो, हम नहीं करत पसंद,वेदोक्त गुरुधर्म सो, तीन लोक में चंद।।
                                                               (सन्दर्भ- श्री गुरुधर्म धुजा पृष्ठ 48, अंक 3 कवि सुचेत सिंह रचित)
                        अर्थात ईश्वर की आज्ञा रूप में जो चार वेद हैं उनमें जिस धर्म का प्रतिपादन हैं उसका ही हम प्रचार करते हैं। वेद विरुद्ध अधर्म होता है उसे हम पसंद नहीं करते। वेदोक्त गुरुधर्म ही तीनों लोकों में चन्द्र के समान आनंददायक है।
                                      गुरु गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह जी को जब मुसलमान होने को कहा गया तो उन्होंने जो उत्तर दिया उनके अंतिम शब्द पंथ प्रकाश में इस प्रकार से दिए गए हैं-
                       
 गिरी से गिरावो काली नाग से डसावो हा हा प्रीत नां छुड़ावों इक हिन्दू धर्म पालसों अर्थात तुम हमें पहाड़ से गिरावो चाहे साप से कटवाओ पर एक हिन्दू धर्म से प्रेम न छुड़वाओं।
                                     आदि ग्रन्थ में वेदों की महिमा बताते हुए कहा गया हैं
                                   
वाणी ब्रह्मा वेद धर्म दृढ़हु पाप तजाया ।
अर्थात वेद ईश्वर की वाणी हैं उसके धर्म पर दृढ़ रहो ऐसा गुरुओं ने कहा है और पाप छुड़ाया है( सन्दर्भ- आदि ग्रन्थ साहिब राग सुहई मुहल्ला 4 बावा छंद 2 तुक 2)
                                   
दिया बले अँधेरा जाये वेद पाठ मति पापा खाय
 वेद पाठ संसार की कार पढ़ पढ़ पंडित करहि बिचार
 बिन बूझे सभ होहि खुआर ,नानक गुरुमुख उतरसि पार
                                   
अर्थात जैसे दीपक जलाने से अँधेरा दूर हो जाता है ऐसे ही वेद का पाठ करके मनन करने से पाप खाये जाते है। वेदों का पाठ संसार का एक मुख्य कर्तव्य है। जो पंडित लोग उनका विचार करते है वे संसार से पार हो जाते है।वेदों को बिना जाने मनुष्य नष्ट हो जाते है। ( सन्दर्भ- आदि ग्रन्थ साहिब राग सुहई मुहल्ला 1 शब्द 17)
                                   
 गुरुनानक देव जी की यह प्रसिद्द उक्ति कि वेद कतेब कहो मत झूठे, झूठा जो ना विचारे अर्थात वेदों को जूठा मत कहो जूठा वो हैं जो वेदों पर विचार नहीं करता सिख पंथ को  हिन्दू सिद्ध करता है।
                                   जहाँ तक इस्लाम का सम्बन्ध है गुरु ग्रन्थ साहिब इस्लाम के मान्यताओं से न केवल भारी भेद रखता हैं अपितु उसका स्पष्ट रूप से खंडन भी करता है।

 1. सुन्नत का खंडन 

 काजी तै कवन कतेब बखानी ॥
पदत गुनत ऐसे सभ मारे किनहूं खबरि न जानी ॥१॥ रहाउ ॥
सकति सनेहु करि सुंनति करीऐ मै न बदउगा भाई ॥
जउ रे खुदाइ मोहि तुरकु करैगा आपन ही कटि जाई ॥२॥
सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ ॥
अरध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ ॥३॥
छाडि कतेब रामु भजु बउरे जुलम करत है भारी ॥
कबीरै पकरी टेक राम की तुरक रहे पचिहारी ॥४॥८॥
                                                       सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 477

अर्थात कबीर जी कहते हैं ओ काजी तो कौनसी किताब का बखान करता है। पढ़ते हुऐ, विचरते हुऐ सब को ऐसे मार दिया जिनको पता ही नहीं चला। जो धर्म के प्रेम में सख्ती के साथ मेरी सुन्नत करेगा सो मैं नहीं कराऊँगा। यदि खुदा सुन्नत करने ही से ही मुसलमान करेगा तो अपने आप लिंग नहीं कट जायेगा। यदि सुन्नत करने से ही मुस्लमान होगा तो औरत का क्या करोगे? अर्थात कुछ नहीं और अर्धांगि नारी को छोड़ते नहीं इसलिए हिन्दू ही रहना अच्छा है। ओ काजी! क़ुरान को छोड़! राम भज१ तू बड़ा भारी अत्याचार कर रहा है, मैंने तो राम की टेक पकड़ ली हैं, मुस्लमान सभी हार कर पछता रहे है।

2. रोजा, नमाज़, कलमा, काबा का खंडन 
रोजा धरै निवाज गुजारै कलमा भिसति न होई ॥
सतरि काबा घट ही भीतरि जे करि जानै कोई ॥२॥

सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 480
अर्थात मुसलमान रोजा रखते हैं और नमाज़ गुजारते है। कलमा पढ़ते है।  और कबीर जी कहते  हैं  इन किसी से बहिश्त न होगी। इस घट (शरीर) के अंदर ही 70 काबा के अगर कोई विचार कर देखे तो।

कबीर हज काबे हउ जाइ था आगै मिलिआ खुदाइ ॥
सांई मुझ सिउ लरि परिआ तुझै किन्हि फुरमाई गाइ ॥१९७॥

सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 1375
अर्थात कबीर जी कहते हैं मैं हज करने काबे जा रहा था आगे खुदा मिल गया , वह खुदा मुझसे लड़ पड़ा और बोला ओ कबीर तुझे किसने बहका दिया।

3. बांग का खंडन

कबीर मुलां मुनारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ ॥
जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतरि जोइ ॥१८४॥

सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 1374

अर्थात कबीर जी कहते हैं की ओ मुल्ला। खुदा बहरा नहीं जो ऊपर चढ़ कर बांग दे रहा है। जिस कारण तू बांग दे रहा हैं उसको दिल ही में तलाश कर।

4. हिंसा (क़ुरबानी) का खंडन 

जउ सभ महि एकु खुदाइ कहत हउ तउ किउ मुरगी मारै ॥१॥
मुलां कहहु निआउ खुदाई ॥ तेरे मन का भरमु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
पकरि जीउ आनिआ देह बिनासी माटी कउ बिसमिलि कीआ ॥
जोति सरूप अनाहत लागी कहु हलालु किआ कीआ ॥२॥
किआ उजू पाकु कीआ मुहु धोइआ किआ मसीति सिरु लाइआ ॥
जउ दिल महि कपटु निवाज गुजारहु किआ हज काबै जाइआ ॥३॥

सन्दर्भ विलास प्रभाती कबीर पृष्ठ 1350

अर्थात कबीर जी कहते है ओ मुसलमानों। जब तुम सब में एक ही खुद बताते हो तो तुम मुर्गी को क्यों मारते हो। ओ मुल्ला! खुदा का न्याय विचार कर कह। तेरे मन का भ्रम नहीं गया है। पकड़ करके जीव ले आया, उसकी देह को नाश कर दिया, कहो मिटटी को ही तो बिस्मिल किया।  तेरा ऐसा करने से तेरा पाक उजू क्या, मुह धोना क्या, मस्जिद में सिजदा करने से क्या, अर्थात  हिंसा करने से तेरे सभी काम बेकार हैं।

कबीर भांग माछुली सुरा पानि जो जो प्रानी खांहि ॥
तीरथ बरत नेम कीए ते सभै रसातलि जांहि ॥२३३॥

सन्दर्भ विलास प्रभाती कबीर पृष्ठ 1377

अर्थात कबीर जी कहते हैं जो प्राणी भांग, मछली और शराब पीते हैं, उनके तीर्थ व्रत नेम करने पर भी सभी रसातल को जायेंगे।

 रोजा धरै मनावै अलहु सुआदति जीअ संघारै ॥
आपा देखि अवर नही देखै काहे कउ झख मारै ॥१॥
काजी साहिबु एकु तोही महि तेरा सोचि बिचारि न देखै ॥
खबरि न करहि दीन के बउरे ता ते जनमु अलेखै ॥१॥ रहाउ ॥

सन्दर्भ रास आगा कबीर पृष्ठ 483

अर्थात ओ काजी साहिब तू रोजा रखता हैं अल्लाह को याद करता है, स्वाद के कारण जीवों को मारता है। अपना देखता हैं दूसरों को नहीं देखता हैं। क्यों समय बर्बाद कर रहा हैं। तेरे ही अंदर तेरा एक खुदा हैं। सोच विचार के नहीं देखता हैं। ओ दिन के पागल खबर नहीं करता हैं इसलिए तेरा यह जन्म व्यर्थ है।


वेद की मान्यताओं का मंडन एवं इस्लाम की मान्यताओं का खंडन गुरु ग्रन्थ साहिब स्पष्ट रूप से करते है। इस पर भी अब हठ रूप में कोई सिख भाई अलगाववाद की बात करता हैं तो वह न केवल अपने आपको अँधेरे में रख रहा हैं अपितु गुरु ग्रन्थ साहिब के सन्देश की अवमानना भी कर रहा हैं।

डॉ विवेक आर्य



5 comments:

  1. pls give refeerence only from guru granth sahib rest granths wriiten by hindu pandits

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    1. Panth Parkash is the name of two well-known books on Sikh history.

      Panth Parkash of Rattan Singh Bhangu, the grandson of famous Sikh warrior, Sardar Mehtab Singh Mirankotia. It was written during 1809-1841. Panth Parkash is the only Sikh source of historical account of Banda Bahadur and the establishment of Sikh rule in the Punjab.[1] It is termed Prachin (old) being older of the two histories.

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  2. बहुत ही अच्छी जानकारी दि आपने भाई साहब जी | आपको साधुवाद
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