Thursday, August 22, 2013

क्या टीपू सुल्तान और औरंगजेब न्याय प्रिय शासक थे ?


अपने आपको सेक्युलर सिद्ध करने की होड़ में इतिहास के साथ छेड़ छाड़ करना बुद्धिमानों का कार्य नहीं है। टीपू सुल्तान और औरंगजेब को सेक्युलर, धर्म निरपेक्ष, हिन्दू हितेषी,हिन्दू मंदिरों और मठों को दान देने वाला, न्याय प्रिय और प्रजा पालक सिद्ध करने के लिए मुस्लिम संप्रदाय लेख पर लेख प्रकाशित कर रहा है। उनके लेखों में इतिहास की दृष्टी से प्रमाण कम हैं,शब्द जाल का प्रयोग अधिक किया गया है। परन्तु हज़ार बार चिल्लाने से भी असत्य सत्य सिद्ध नहीं हो जाता। इस लेख के माध्यम से यह सिद्ध किया गया हैं की औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान मतान्ध एवं अत्याचारी शासक थे। मुसलमानों द्वारा हिन्दू युवकों को भ्रमित करने के लिए की जा रही यह कवायद निरर्थक एवं निष्फल सिद्ध होगी।



भाग 1- टीपू सुल्तान के जीवन की समीक्षा

टीपू सुल्तान को जानने के लिए उसके सम्पूर्ण जीवन में किये गए कार्य कलापों के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है। अपवाद रूप से एक-दो मंदिर , मठ को सहयोग करने से हजारों मंदिरों को नाश करने का, लाखों हिन्दुओं को इस्लाम में परिवर्तन करने का, हज़ारों की संख्या में हिन्दुओं की हत्या का दोष टीपू के माथे से धुल नहीं सकता हैं।  टीपू के अत्याचारों की अनदेखी कर उसे धर्म निरपेक्ष सिद्ध करने के प्रयास को हम बौधिक आतंकवाद की श्रेणी में रखे तो अतिश्योक्ति न होगी। सेक्युलर वादियों का कहना हैं की टीपू सुल्तान ने श्री रंगपटनम के मंदिर में और श्रृंगेरी मठ में दान दिया एवं मठ के शंकराचार्य के साथ टीपू का पत्र व्यवहार भी था। जहाँ तक श्रृंगेरी मठ से सम्बन्ध हैं डॉ ऍम गंगाधरन मातृभूमि साप्ताहिक जनवरी 14-20,1990 में एक लेख में लिखते है की टीपू सुल्तान भूत प्रेत आदि में विश्वास रखता था।  उसने श्रृंगेरी मठ के आचार्यों को धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए दान भेजा जिससे उसकी सेना पर भूत- प्रेत आदि का कूप्रभाव न पड़े। पि.सी.न राजा केसरी वार्षिक 1964 में लिखते हैं की श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के पुजारियों द्वारा टीपू सुल्तान के लिए एक भविष्यवाणी करी थी जिसके अनुसार अगर टीपू सुल्तान मंदिर में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान करवाता था जिससे उसे दक्षिण भारत का सुलतान बनने से कोई रोक नहीं सकता। अंग्रेजों से एक बार युद्ध में विजय प्राप्त होने का श्रेय टीपू ने ज्योतिषों की उस सलाह को दिया था जिसके कारण उसे युद्ध में विजय प्राप्त हुई, इसी कारण से टीपू ने उन ज्योतिषियों को और मंदिर को ईनाम रुपी सहयोग देकर सम्मानित किया था। इस प्रसंग को सेकुलर लाबी टीपू को हिन्दू मुस्लिम एकता के रूप में प्रतिपादित करने का प्रयास करते हैं जबकि सत्य कुछ ओर हैं।
                                       टीपू द्वारा हिन्दुओं पर किया गए अत्याचार उसकी निष्पक्ष होने  की भली प्रकार से पोल खोलते हैं।

1. डॉ गंगाधरन जी ब्रिटिश कमीशन कि रिपोर्ट के आधार पर लिखते है की ज़मोरियन राजा के परिवार के सदस्यों को और अनेक नायर हिन्दुओं को टीपू द्वारा जबरदस्ती सुन्नत कर मुसलमान बना दिया गया था और गौ मांस खाने के लिए मजबूर भी किया गया था।
2. ब्रिटिश कमीशन रिपोर्ट के आधार पर टीपू सुल्तान के मालाबार हमलों 1783-1791 के समय करीब 30,000  हिन्दू नम्बूदरी मालाबार में अपनी सारी धनदौलत और घर-बार छोड़कर त्रावनकोर राज्य में आकर बस गए थे।
3. इलान्कुलम कुंजन पिल्लई लिखते है की टीपू सुल्तान के मालाबार आक्रमण के समय कोझीकोड में 7000 ब्राह्मणों के घर थे जिसमे से 2000 को टीपू ने नष्ट कर दिया था और टीपू के अत्याचार से लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर जंगलों में भाग गए थे।  टीपू ने औरतों और बच्चों तक को नहीं बक्शा था। जबरन धर्म परिवर्तन के कारण मापला मुसलमानों की संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई जबकि हिन्दू जनसंख्या न्यून हो गई।
4.  विल्ल्यम लोगेन मालाबार मनुएल में टीपू द्वारा तोड़े गए हिन्दू मंदिरों काउल्लेख करते हैं जिनकी संख्या सैकड़ों में है।
5.  राजा वर्मा केरल में संस्कृत साहित्य का इतिहास में मंदिरों के टूटने का अत्यंत वीभत्स विवरण करते हुए लिखते हैं की हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़कर व पशुओं के सर काटकर मंदिरों को अपवित्र किया जाता था।
6.  मसूर में भी टीपू के राज में हिन्दुओं की स्थिति कुछ अच्छी न थी। लेवईस रईस के अनुसार श्री रंगपटनम के किले में केवल दो हिन्दू मंदिरों में हिन्दुओं को दैनिक पूजा करने का अधिकार था बाकी सभी मंदिरों की संपत्ति जब्त कर ली गई थी। यहाँ तक की राज्य सञ्चालन में हिन्दू और मुसलमानों में भेदभाव किया जाता था।  मुसलमानों को कर में विशेष छुट थी और अगर कोई हिन्दू मुसलमान बन जाता था तो उसे भी छुट दे दी जाती थी। जहाँ तक सरकारी नौकरियों की बात थी हिन्दुओं को न के बराबर सरकारी नौकरी में रखा जाता था कूल मिलाकर राज्य में 65 सरकारी पदों में से एक ही प्रतिष्ठित हिन्दू था तो वो केवल और केवल पूर्णिया पंडित था।
7.  इतिहासकार ऍम. ए. गोपालन के अनुसार अनपढ़ और अशिक्षित मुसलमानों को आवश्यक पदों पर केवल मुसलमान होने के कारण नियुक्त किया गया था।
8. बिदुर,उत्तर कर्नाटक का शासक अयाज़ खान था जो पूर्व में कामरान नाम्बियार था, उसे हैदर अली ने इस्लाम में दीक्षित कर मुसलमान बनाया था।  टीपू सुल्तान अयाज़ खान को शुरू से पसंद नहीं करता था इसलिए उसने अयाज़ पर हमला करने का मन बना लिया। जब अयाज़ खान को इसका पता चला तो वह बम्बई भाग गया. टीपू बिद्नुर आया और वहाँ की सारी जनता को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर कर दिया था।  जो न बदले उन पर भयानक अत्याचार किये गए थे।  कुर्ग पर टीपू साक्षात् राक्षस बन कर टूटा था।  वह करीब 10,000 हिन्दुओं को इस्लाम में जबरदस्ती परिवर्तित किया गया।  कुर्ग के करीब 1000 हिन्दुओं को पकड़ कर श्री रंगपटनम के किले में बंद कर दिया गया जिन पर इस्लाम कबूल करने के लिए अत्याचार किया गया बाद में अंग्रेजों ने जब टीपू को मार डाला तब जाकर वे जेल से छुटे और फिर से हिन्दू बन गए। कुर्ग राज परिवार की एक कन्या को टीपू ने जबरन मुसलमान बना कर निकाह तक कर लिया था। ( सन्दर्भ पि.सी.न राजा केसरी वार्षिक 1964)
9. विलियम किर्कपत्रिक ने 1811 में टीपू सुल्तान के पत्रों को प्रकाशित किया था जो उसने विभिन्न व्यक्तियों को अपने राज्यकाल में लिखे थे। जनवरी 19,1790 में जुमन खान को टीपू पत्र में लिखता हैं की मालाबार में 4 लाख हिन्दुओं  को इस्लाम में शामिल किया है।  अब मैंने त्रावणकोर के राजा पर हमला कर उसे भी इस्लाम में शामिल करने का निश्चय किया हैं। जनवरी 18,1790 में सैयद अब्दुल दुलाई को टीपू पत्र में लिखता है की अल्लाह की रहमत से कालिक्ट के सभी हिन्दुओं को इस्लाम में शामिल कर लिया गया है, कुछ हिन्दू कोचीन भाग गए हैं उन्हें भी कर लिया जायेगा। इस प्रकार टीपू के पत्र टीपू को एक जिहादी गिद्ध से अधिक कुछ भी सिद्ध नहीं करते।
10. मुस्लिम इतिहासकार पि. स. सैयद मुहम्मद केरला मुस्लिम चरित्रम में लिखते हैं की टीपू का केरल पर आक्रमण हमें भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेज़ खान और तिमूर लंग की याद दिलाता हैं।
                           इस लेख में टीपू के अत्याचारों का अत्यंत संक्षेप में विवरण दिया गया हैं। अगर सत्य इतिहास का विवरण करने लग जाये तो हिंदुयों पर किया गए टीपू के अत्याचारों का बखान करते करते पूरा ग्रन्थ ही बन जायेगा।  सबसे बड़ी विडम्बना मुसलमानों के साथ यह है की इन लेखों को पढ़ पढ़ कर दक्षिण भारत के विशेष रूप से केरल और कर्नाटक के मुसलमान वाह वाह कर रहे होंगे जबकि सत्यता यह हैं टीपू सुल्तान ने लगभग 200 वर्ष पहले उनके ही हिन्दू पूर्वजों को जबरन मुसलमान बनाया था। यही स्थिति पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमानों की हैं जो अपने यहाँ बनाई गई परमाणु मिसाइल का नाम गर्व से गज़नी और गौरी रखते हैं जबकि मतान्धता में वे यह तक भूल जाते हैं की उन्ही के हिन्दू पूर्वजों पर विधर्मी आक्रमणकारियों ने किस प्रकार अत्याचार कर उन्हें हिन्दू से मुसलमान बनाया था।



भाग 2

क्या औरंगजेब धर्मनिरपेक्ष था?

एक अन्य लेख द्वारा हिन्दुओं पर असंख्य अत्याचार करने वाले औरंगजेब को निष्पक्ष बनाने का असफल प्रयास हैं। स्वतंत्र भारत में इतिहास विषय के साथ सबसे बड़ा मजाक यह हुआ हैं की अपने अपने राजनैतिक हितों को पूरा करने के लिए पाठ्यक्रम में मनमाने परिवर्तन किये गए जिससे की विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए निष्पक्ष रूप से इतिहास पर अनुसन्धान करने की संभावना लगभग न के बराबर ही हो गयी हैं जैसे की भारत पर आक्रमण करने वाले मुहम्मद गोरी और गजनी को महान बता कर उनकी अनुशंसा करन।  वामपंथी और मुस्लिम इतिहासकारों की खास बात यह भी हैं की इतिहास में जहाँ जहाँ मुस्लिम आक्रान्ताओं ने हिन्दुओं पर विजय प्राप्त की हैं उसकी बढ़ा चढ़ा कर प्रशंसा की गयी हैं, जबकि हिन्दू राजाओं द्वारा प्राप्त की गयी विजय को लगभग नकार हो दिया गया हैं।  भूल चुक से वीर शिवाजी और महाराणा प्रताप का नाम अगर किसी ने ले भी लिया तो उस पर धार्मिक कट्टरवाद का आरोप लगाने में कोई पीछे नहीं रहता।  इसी कड़ी में इस लेख के लेखक का नाम लेना भी कोई गलत न होगा।  किसी काल में भारत के सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही रहे थे पर इस्लाम ग्रहण करने के कारण मर्यादा पुरुषोतम श्री राम और योगिराज श्री कृष्ण उनके लिए आदर्श नहीं रहे और हिन्दुओं पर पाशविक अत्याचार करने वाले टीपू सुल्तान और औरंगजेब उनके लिए सबसे आदर्श व्यक्तियों में से एक बन गए। भारत में इस्लामिक आक्रान्ताओं का इतिहास मूलत: उन मुस्लिम लेखकों द्वारा लिखा गया था जो उन्ही आक्रान्ताओं के वेतन भोगी कर्मचारी थे इसलिए यह स्वाभाविक ही था की वे अपने ही आकाओं के गुणों को बड़ा चड़ा कर लिखते हैं और दोषों को छुपाते हैं। प्रसिद्द इतिहास लेखक इलिओत एंड डावसन [Eliot and DawsonThe History of India, as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period vol . 1 -8 1867 -1877] के अनुसार मुस्लिम लेखकों की विश्वसनीयता इसी कारण से कम ही हैं क्यूंकि उन्होंने अनेक स्थानों पर अतिश्योक्ति युक्त वर्णन अधिक किये हुए हैं।

आईये औरंगजेब की तथाकथित धर्म निरपेक्षता को इतिहास के तराजू में तोल कर उनका मूल्याँकन करे।

औरंगजेब के विषय में लेखक दुनिया के सबसे अनभिज्ञ प्राणी के समान व्यवहार करते हुए कहता हैं की औरंगजेब ने अपने आदेशों में किसी भी हिन्दू मंदिर को न तोड़ने का हुकुम नहीं दिया।  सत्य तो इतिहास हैं और इतिहास का आंकलन अगर औरंगजेब के फरमानों से ही किया जाये तो निष्पकता उसे ही कहेंगे। फ्रेंच इतिहासकार फ़्रन्कोइस गौटियर (Francois Gautier) ने औरंगजेब द्वारा फारसी भाषा में जारी किये गए फरमानों को पूरे विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर सभी सेकुलर वादियों के मुहँ पर ताला लगा दिया जिसमे हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने और हिन्दू मंदिरों को तोड़ने की स्पष्ट आज्ञा थी।   इस्लाम कीस्थापना के बाद चार में से तीन खलीफा असमय मृत्यु को प्राप्त हुए और उनकी मृत्यु का कारण गैर मुस्लिम नहीं अपितु मुस्लिम ही थे, औरंगजेब भी उसी परंपरा का निरवाहन करता हुआ “आलमगीर” बनने की चाहत में अपनी सगे भाइयों की गर्दन पर छुरा चलाने से और अपने बूढ़े बाप को जेल में डालकर प्यासा मारने से नहीं चूकता तो उससे हिन्दू प्रजा की सलामती की इच्छा रखना बेईमानी होगी।  लेखक ने बनारस के विश्वनाथ मंदिर को दहाने के पीछे विशम्बर नाथ पाण्डेय (B.N.Pandey) का सन्दर्भ देते हुए यह कारण बताया हैं की औरंगजेब बंगाल जाते समय बनारस से गुजर रहा था।  उसके काफिले के हिन्दू राजाओं ने उससे विनती करी की अगर बनारस में एक दिन का पड़ाव कर लिया जाये तो उनकी रानियाँ बनारस में गंगा स्नान और विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना करना चाहती है। औरंगजेब ने यह प्रस्ताव फ़ौरन स्वीकार कर लिया।  उनकी रानियों ने गंगा स्नान भी किया और मंदिर में पूजा करने भी गई। लेकिन एक रानी मंदिर से वापिस नहीं लौटी।  औरंगजेब ने अपने बड़े अधिकारियों को मंदिर की खोज में लगाया। उन्होंने पाया की दिवार में लगी हुई मूर्ति के पीछे एक खुफियाँ रास्ता है और मूर्ति हटाने पर यह रास्ता एक तहखाने में जाता है।  उन्होंने तहखाने में जाकर देखा की यहाँ रानी मौजूद हैं जिसकी इज्जत लूटी गयी और वह चिल्ला रही थी।  यह तहखाना मूर्ति के ठीक नीचे बना हुआ था। राजाओं ने सख्त कार्यवाही की मांग की।  औरंगजेब ने हुक्म दिया की चूँकि इस पावन स्थल की अवमानना की गयी हैं, इसलिए विश्वनाथ की मूर्ति यहाँ से हटाकर कही और रख दी जाये और दोषी महंत को गिरफ्तार कर सख्त से सख्त सजा दी जाये। यह थी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने की पृष्ठभूमि जिसे डॉक्टर पट्टाभि सीतारमैया ने अपनी पुस्तक Feather and the stones में भी लिखा हैं। आइये लेखक के इस प्रमाण की परीक्षा करे –
 1. सर्वप्रथम तो औरंगजेब के किसी भी जीवन चरित में ऐसा नहीं लिखा हैं की वह अपने जीवन काल में युद्ध के लिए कभी बंगाल गया था।
 2 . औरंगजेब के व्यक्तित्व से स्पष्ट था की वह हिन्दू राजाओं को अपने साथ रखनानापसंद करता था क्यूंकि वह उन्हें काफ़िर समझता था।
3. युद्ध में लाव लश्कर को ले जाया जाता हैं नाकि सोने से लदी हुई रानियों की डोलियाँ लेकर जाई जाती है।
4. जब रानी गंगा स्नान और मंदिर में पूजा करने गयी तो क्या उनके साथ सुरक्षा की दृष्टी से कोई सैनिक नहीं थे जो उसका अपहरण बिना कोलाहल के हो गया।
5. दोष विश्वनाथ की मूर्ति का था अथवा पाखंडी महंत का तो सजा केवल महंत को मिलनी चाहिए थी, हिन्दुओं के मंदिर को तोड़कर औरंगजेब क्या हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ नहीं कर रहा था।
6. पट्टाभि जी की जिस पुस्तक का प्रमाण लेखक दे रहे हैं सर्वप्रथम तो वह पुस्तक अब अप्राप्य हैं दूसरे उस पुस्तक में इस घटना के सन्दर्भ में लिखा हैं की इस तथ्य का कोई लिखित प्रमाण आज तक नहीं मिला है केवल लखनऊ में रहना वाले किसी मुस्लिम व्यक्ति को किसी दुसरे व्यक्ति ने इसका मौखिक वर्णन देने के बाद इस का प्रमाण देने का वचन दिया था पर उसकी असमय मृत्यु से उसका प्रमाण प्राप्त न हो सका।  इस व्यक्ति के मौखिक वर्णन को प्रमाण बताना इतिहास का मजाक बनाने के समान ही है। कूल मिला कर यह औरंगजेब को निष्पक्ष घोषित करने का एक असफल प्रयास के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं है।
औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए फरमानों का कच्चाचिट्ठा।

13 अक्तूबर,1666- औरंगजेब ने मथुरा के केशव राय मंदिर से नक्काशीदार जालियों को जोकि उसके बड़े भाई दारा शिको द्वारा भेंट की गयी थी को तोड़ने का हुक्म यह कहते हुए दिया की किसी भी मुसलमान के लिए एक मंदिर की तरफ देखने तक की मनाही हैंऔर दारा शिको ने जो किया वह एक मुसलमान के लिए नाजायज हैं।
12 सितम्बर 1667 को औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के प्रसिद्द कालकाजी मंदिर को तोड़ दिया गया।
9 अप्रैल 1669 को मिर्जा राजा जय सिंह, अम्बेर की मौत के बाद औरंगजेब के हुक्म से उसके पूरे राज्य में जितने भी हिन्दू मंदिर थे उनको तोड़ने का हुक्म देदिया गया और किसी भी प्रकार की हिन्दू पूजा पर पाबन्दी लगा दी गयी जिसके बाद केशव देव राय के मंदिर को तोड़ दिया गया और उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गयी। मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर आगरा लेकर जाया गया और उन्हें मस्जिद की सीढियों में दफ़न करदिया गया और मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया।  इसके बाद औरंगजेब ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर का भी विध्वंश कर दिया।
5 दिसम्बर 1671 को औरंगजेब के शरीया को लागु करने के फरमान से गोवर्धन स्थित श्री नाथ जी की मूर्ति को पंडित लोग मेवाड़ राजस्थान के सिहाद गाँव ले गए जहाँ के राणा जी ने उन्हें आश्वासन दिया की औरंगजेब की इस मूर्ति तक पहुँचने से पहले एक लाख वीर राजपूत योद्धाओं को मरना पड़ेगा।
25 मई 1679 को जोधपुर से लूटकर लाई गयी मूर्तियों के बारे में औरंगजेब ने हुकुम दिया की सोने-चाँदी-हीरे से सज्जित मूर्तियों को जिलाल खाना में सुसज्जित कर दिया जाये और बाकि मूर्तियों को जमा मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये.
23 दिसम्बर 1679 को औरंगजेब के हुक्म से उदयपुर के महाराणा झील के किनारे बनाये गए मंदिरों को तोड़ा गया।  महाराणा के महल के सामने बने जगन्नाथ के मंदिर को मुट्ठी भर वीर राजपूत सिपाहियों ने अपनी बहादुरी से बचा लिया।
22 फरवरी 1680 को औरंगजेब ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर महाराणा कुम्भा द्वारा बनाएँ गए 63 मंदिरों को तोड़ डाला।
1 जून 1681 को औरंगजेब ने प्रसिद्द पूरी का जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने का हुकुम दिया।
13 अक्टूबर 1681 को बुरहानपुर में स्थित मंदिर को मस्जिद बनाने का हुकुमऔरंगजेब द्वारा दिया गया।
13 सितम्बर 1682 को मथुरा के नन्द माधव मंदिर को तोड़ने का हुकुम औरंगजेबद्वारा दिया गया।
                    इस प्रकार अनेक फरमान औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारीकिये गए. इस्लामिक लेखक इन फरमानों को कैसे नकार सकते है। अन्यथा प्रत्येक फरमान को सही सिद्ध करने के लिए एक नई कहानी बनाने की आवश्यकता पड़ेगी।

हिन्दुओं पर औरंगजेब द्वारा अत्याचार करना

2 अप्रैल 1679 को औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया जिसका  हिन्दुओं ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक विरोध किया परन्तु उसे बेरहमी से कुचल दिया गया। इसके साथ साथ मुसलमानों को करों में छूट दे दी गई जिससे हिन्दू अपनी निर्धनता और कर न चूका पाने की दशा में इस्लाम ग्रहण कर ले। 16 अप्रैल 1667 को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और त्यौहार बनाने से मना कर दिया गया। इसके बाद सभी सरकारी नौकरियों से हिन्दू कर्मचारियों को निकल कर उनके स्थान पर मुस्लिम कर्मचारियों की भर्ती का फरमान भी जारी कर दिया गया। हिन्दुओं को शीतला माता, पीरप्रभु आदि के मेलों में इकठ्ठा न होने का हुकुम दिया गया। हिन्दुओं को पालकी,हाथी,घोड़े की सवारी की मनाई कर दी गयी। कोई हिन्दू अगर इस्लाम ग्रहण करता तो उसे कानूनगो बनाया जाता और हिन्दू पुरुष को इस्लाम ग्रहण करने पर 4 रुपये और हिन्दू स्त्री को 2 रुपये मुसलमान बनने के लिए दिए जाते थे। ऐसे न जाने कितने अत्याचार औरंगजेब ने हिन्दू जनता पर किये और आज उसी द्वारा जबरन मुस्लिम बनाये गए लोगों के वंशज उसका गुण गान करते नहीं थकते। इतिहास में शायद ही ऐसे मुर्खता कहीं और दिखेगी। इन प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध होता हैं की औरंगजेब और टीपू सुल्तान सेक्युलर नहीं अपितु मतान्ध शासक थे जिन्होंने हिन्दुओं पर अनगिनत अत्याचार किये थे।

डॉ विवेक आर्य

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