tag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post2184056130947975272..comments2024-02-26T01:11:09.990-08:00Comments on vedictruth: मैं आस्तिक क्यों हूँ?vedic wisdomhttp://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-60072595357213773082021-08-13T09:44:36.095-07:002021-08-13T09:44:36.095-07:00सर एक सवाल का जवाब दे दीजिए बस, कहते हैं ईश्वर की ...सर एक सवाल का जवाब दे दीजिए बस, कहते हैं ईश्वर की मर्जी से सब कुछ होता है, ईश्वर की इच्छा के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता,ईश्वर हर जगह उपस्थित होते हैं, तो रेप , हत्या(हैदराबाद,हाथरस कांड आदि) सब ईश्वर की मर्जी और मौजूदगी में होता है तो असली गुनेहगार कौन है? इंसान या भगवान? Manisha Goswamihttps://www.blogger.com/profile/10646619362412419141noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-71589249474993392282016-12-17T02:12:59.561-08:002016-12-17T02:12:59.561-08:00Dictionary of any language have not so word which...Dictionary of any language have not so word which can express the true feelings of enlightened heart, this can be understood only by self enlightenment.when u know the thing u will not need to urgue about Almighty god. Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02163572361196411696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-75586858727055704982016-10-16T03:53:39.160-07:002016-10-16T03:53:39.160-07:00
there is a lot of facts for sensible human to ado...<br />there is a lot of facts for sensible human to adopt the truth....<br />if someone has doubt...first of all study dat holy books which r mentioned.<br />even if having trouble to understand...i m here......<br />bt follow d simple maths rule.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13983969587614337053noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-66775937766137074852016-10-15T21:22:34.510-07:002016-10-15T21:22:34.510-07:00बहुत सुंदर व ज्ञान वर्धक लेख है। बहुत सुंदर व ज्ञान वर्धक लेख है। Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06468159524547284411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-63272365495606225542016-10-15T06:54:43.398-07:002016-10-15T06:54:43.398-07:00Vivek ji you are trying to teach them who dont wan...Vivek ji you are trying to teach them who dont want to think out of box. ask them if God is false than nationalism is also fall. can they prove nationalism exist. than why every indian is nationalist. they are blind by logic. Love, Lust, anger and nationalism all are not exist in real world but drives human consciousness. this is sad people get into communist agenda of secularism. Nationalism is not blind divinity to peace of a land. Surender Negihttps://www.blogger.com/profile/14783439630582575738noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-51076139026593330252016-10-15T02:04:15.206-07:002016-10-15T02:04:15.206-07:00This comment has been removed by the author.Jitendra Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/17320352944978186483noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-67939435106913084802016-10-15T01:55:47.874-07:002016-10-15T01:55:47.874-07:00सही कहा आपने।सही कहा आपने।Jitendra Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/17320352944978186483noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-38944930800541961122016-10-13T05:39:13.116-07:002016-10-13T05:39:13.116-07:00जहाँ तक मैं समझता हूँ नास्तिकों को इस बात से बिल्क...जहाँ तक मैं समझता हूँ नास्तिकों को इस बात से बिल्कुल भी समस्या नहीं है कि कोई ईश्वर को मानता है। ये दुनिया स्वतः बनी या किसी शक्ति ने इसको निर्मित किया, इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता। समस्या केवल उस प्रपंच से है जो की ईश्वर को मानने के बाद खड़ा होता है। मनुष्य को बाड़े में बांधने की जो कोशिश है वो समस्या खड़ी करती है। जो लालच और भय ईश्वर के कारण खड़ा होता है वो समस्या है। <br /><br />असल में धर्म के मार्ग पर चलने के लिए हमे ईश्वर की बैसाखी की जरूरत नहीं है। धर्म का सही अर्थ है इस प्रकृति के गुण स्वाभाव को समझना और उसके अनुसार आचरण करना। और प्रकृति की दंड व्यवस्था प्रत्यक्ष है। उसके लिए किसी क़यामत आने का, स्वर्ग नर्क जाने का या पुनर्जन्म का इन्तजार करने की जरूरत नहीं है। बस उसको सूक्ष्मता से अनुभव करने की जरूरत है। और अगर आप सूक्ष्मता से अनुभव करें तो आप पाएंगे कि आप अपना बुरा किये बिना किसी का बुरा कर ही नहीं सकते। यही तो धर्म का सार है। Arpit Dwivedihttps://www.blogger.com/profile/07990048822829172174noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-36757484633691559842016-04-11T19:29:52.263-07:002016-04-11T19:29:52.263-07:00जिस प्रकार अपराधी को यह भरोसा हो जाय कि कानून के द...जिस प्रकार अपराधी को यह भरोसा हो जाय कि कानून के द्वारा उसके अपराध करने पर कोई सजा नहीं मिल सकती तो वह निर्भय पूर्वक अपराध करता है।<br />सभी प्रणियों को कर्मानुसार फल देना ईश्वर का कार्य है, क्षमा करना नहीं। मनुष्य अपने कर्मों में स्वतंत्र एवं ईश्वर की व्यवस्था में परतंत्र है।<br />मजदूर ने पहाड़ से लोहा निकाला, दुकानदार ने खरीदा, लौहार ने तलवार बनाई, सिपाही ने तलवार ली, उसने किसी को मार दिया। अब अपराधी लोहे का निकालने वाला मजदूर, खरीदने वाला दुकानदार और बनाने वाला लौहार नहीं होगा। बल्कि केवल वह सिपाही होगा जिसने किसी की हत्या की। इसलिये शरीर आदि की उत्पत्ति करने वाला ईश्वर व्यक्ति के कार्यों का भोक्ता नहीं होगा। क्योंकि कर्म करने वाला परमेशवर नहीं होता। यदि ऐसा होता तो क्या किसी को पाप करने की प्रेरणा देता। अतः मनुष्य कार्य करने के लिये स्वतंत्र है। उसी तरह ईश्वर भी कर्मानुसार फल देने के लिये स्वतंत्र है।<br />जीव और ईश्वर दोंनो चेतन स्वरूप हैं। स्वभाव दोनों का पवित्र, अविनाशी एवं धार्मकिता आदि है। परन्तु परमेश्वर के सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, सबको नियम में रखना, जीवों का पाप पुण्य के फल देना आदि धर्मयुक्त कार्य हैं। और जीव में पदार्थों को पाने की अभिलाषा (इच्छा), द्वेष दुखादि की अनिच्छा, बैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, बल, (सुख) आनन्द, (दुख) विलाप, अप्रसन्नता, (ज्ञान) विवेक पहचानना ये तुल्य हैं। किन्तु वैशेषिक में प्राण वायु को बाहर निकालना, फिर उसे बाहर से भीतर लेना, (निमेष) आँख को मींचना, (उन्मेष) आँखों को खोलना, (जीवन) प्राण धारण करना, (मनन) निश्चय स्मरण अहंकार करना, (गति) चलना, (इन्दिय) सब इन्दियों को चलाना, (अंतर्विकार) भिन्न-भिन्न सुधा, तृष्णा, हर्ष, शोकादि युक्त होना, ये जीवात्मा के गुण परमात्मा से भिन्न हैं।<br />ईश्वर को त्रिकालदर्शी कहना मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं। क्योंकि जो ईश्वर होकर न रहे वह भविष्यकाल कहलाता है। क्या ईश्वर को कोई ज्ञान रहके नहीं रहता? तथा न होके होता है? इसलिये परमात्मा का ज्ञान एक रस अखण्डित वर्तमान रहता है। भूत, भविष्यत् जीवों के लिये है। जीवों के कर्म की अपेक्षा से त्रिकालज्ञाता ईश्वर में है, स्वतः नहीं। जैसा स्वतंत्रता से जीव करता है, वैसा ही सर्वज्ञता से ईश्वर जानता है और जैसा ईश्वर जानता है वैसा जीव करता है अर्थात् भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञान और फल देने में ईश्वर स्वतंत्र और जीव किंचित वर्तमान और कर्म करने में स्वतंत्र है। ईश्वर का अनादि ज्ञान होने से जैसा कर्म का ज्ञान है वैसा ही दण्ड देने का भी ज्ञान अनादि है। दोनों ज्ञान उसके सत्य हैं। क्या कर्म ज्ञान सच्चा और दण्ड ज्ञान मिथ्या कभी हो सकता है। इसलिये इसमें कोई भी दोष नहीं आता।<br />परमेश्वर सगुण एवं निर्गुण दोनों है। गुणों से सहित सगुण, गुणों से रहित निर्गुण। अपने अपने स्वाभाविक गुणों से सहित और दूसरे विरोधी के गुणों से रहित होने से सब पदार्थ सगुण और निर्गुण हैं। कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है जिसमें केुवल निर्गुणता या केवल सगुणता हो। किन्तु एक ही में निर्गुणता एवं सगुणता सदा रहती है। वैसे ही परमेश्वर अपने अनंत ज्ञान बलादि गुणों से सहित होने से सगुण रूपादि जड़ के तथा द्वेषादि के गुणों से प्रथक होने से निर्गुण कहलाता है। यह कहना अज्ञानता है कि निराकार निर्गुण और साकार सगुण है।<br />परमेश्वर न रागी है, न विरक्त। राग अपने से भिन्न प्रथक पदार्थों में होता है, सो परमेश्वर से कोई पदार्थ प्रथक तथा उत्तम नहीं है, अतः उसमें राग का होना संभव नहीं है। और जो प्राप्त को छोड़ देवे उसको विरक्त कहते हैं। ईश्वर व्यापक होने से किसी पदार्थ को छोड़ ही नहीं सकता। इसलिये विरक्त भी नहीं है।<br />ईश्वर में प्राणियों की तरह की इच्छा नहीं होती।<br />जो स्वयंभू, सर्वव्यापक, शुद्ध, सनातन, निराकार परमेश्वर है वह सनातन जीवरूपी प्रजा के कल्याणार्थ यथावत् रीतिपूर्वक वेद द्वारा सब विद्याओं का उपदेश करता है।<br />परमेश्वर के सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक होने से जीव को अपनी व्याप्ति से वेदविद्या के उपदेश करने में कुछ भी मुखादि की अपेक्षा नहीं है। क्योंकि मुख जिव्हा से वर्णोंच्चारण अपने से भिन्न को बोध होने के लिये किया जाता है, कुछ अपने लिये नहीं। क्योंकि मुख जिव्हा के व्यावहार करे बिना ही मन के अनेक व्यावहारों का विचार और शब्दोंच्चारण होता रहता है। कानों का उँगुलियों से मूँद कर देखो, सुनों कि बिना मुख जिव्हा ताल्वादि स्थानों के कैसे कैसे शब्द हो रहे हैं?<br />जब परमात्मा निराकार, सर्वव्यापक है तो अपनी अखिल वेद विद्या का उपदेश जीवस्थ स्वरूप से जीवात्मा में प्रकाशित कर देता है। फिर वह मनुष्य अपने मुख से उच्चारण करके दूसरे को सुनाता है। इसे ही वेद ज्ञान कहते हैं जो समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए ईश्वर द्वारा दिया गया हैं।vedic wisdomhttps://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-69111146909368035322016-04-11T19:29:36.859-07:002016-04-11T19:29:36.859-07:00ईश्वर आदि भी है और अनादि भी। ईश्वर सबकी भलाई एवं स...ईश्वर आदि भी है और अनादि भी। ईश्वर सबकी भलाई एवं सबके लिये सुख चाहता है परन्तु स्वतंत्रता के साथ किसी को बिना पाप किये पराधीन नहीं करता।<br />ईश्वर की स्तुति प्रार्थना करने से लाभः- स्तुति से ईश्वर से प्रीति, उसके गुण, कर्म, स्वभाव से अपने गुण, कर्म, स्वभाव को सुधारना। प्रार्थना से निरभयता, उत्साह और सहाय का मिलना। उपासना से परब्रह्म से मेल और साक्षात्कार होना।<br />ईश्वर के हाथ नहीं किन्तु अपने शक्ति रूपी हाथ से सबका रचन, ग्रहण करता। पग नहीं परन्तु व्यापक होने से सबसे अधिक वेगवान। चक्षु का गोलक नहीं परन्तु सबको यथावत देखता। श्रोत नहीं तथाकथित सबकी बातें सुनता। अंतःकरण नहीं परन्तु सब जगत को जानता है और उसको अवधि सहित जानने वाला कोई भी नहीं। उसको सनातन, सबसे श्रेष्ठ, सबमें पूर्ण होने से पुरुष कहते हैं। वह इन्द्रियों और अंतःकरण के बिना अपने सब काम अपने सामर्थ्य से करता है।<br />न कोई उसके तुल्य है और न उससे अधिक। उसमें सर्वोत्तम शक्ति अर्थात जिसमें अनंत ज्ञान, अनंत बल और अनंत क्रिया है। यदि परमेश्वर निष्क्रिय होता तो जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय न कर सकता। इसलिये वह विभू तथापि चेतन होने से उस क्रिया में भी है।<br />ईश्वर जितने देश काल में क्रिया करना उचित समझता है उतने ही देशकाल में क्रिया करता है। न अधिक न न्यून क्योंकि वह विद्वान है।<br />परमात्मा पूर्ण ज्ञानी है, पूर्ण ज्ञान उसे कहते हैं जो पदार्थ जिस प्रकार का हो उसे उसी रूप में जानना।<br />परमेंश्वर अनंत है। तो उसको अनंत ही जानना ज्ञान, उसके विरुद्ध अज्ञान अर्थात अनंत को सांत और सांत को अनंत जानना भ्रम कहलाता है। यथार्थ दर्शन ज्ञानमिति, जिसका जैसा गुण, कर्म, स्वभाव हो उस पदार्थ को वैसा जानकर मानना ही ज्ञान और विज्ञान कहलाता है और उससे उल्टा अज्ञान।<br />ईश्वर जन्म नहीं लेता, यदुर्वेद में लिखा है ‘अज एकपात्’ सपथर्यगाच्छुक्रमकायम।<br />यदा यदा…………..सृजाम्यहम्।<br />यह बात वेद विरुद्ध प्रमाणित नहीं होती। ऐसा हो सकता है कि श्रीकृष्ण धर्मात्मा धर्म की रक्षा करना चाहते थे कि मैं युग युग में जन्म लेके श्रेष्ठों की रक्षा और दुष्टों का नाश करूँ तो कुछ दोष नहीं। क्योंकि ‘परोपकाराय सतां विभूतयः’ परोपकार के लिये सत्पुरुषों का तन, मन, धन होता है। किन्तु इससे श्रीकृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते।<br />वेदार्थ को न जानने, सम्प्रदायी लोंगो के बहकावे और अपने आप अविद्वान होने से भ्रमजाल में फँसके ऐसी ऐसी अप्रमाणिक बातें करते और मानते हैं।<br />जो ईश्वर अवतार शरीर धारण किये बिना जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय करता है उसके लिये कंस और रावणादि एक कीड़ी के समान भी नहीं हैं। वह सर्वव्यापक होने से कंस रावणादि के शरीर में भी परिपूर्ण हो रहा है। जब चाहे उसी समय मर्मच्छेदन कर नाशकर सकता है। भला वह अनंत गुण, कर्म स्वभावयुक्त परमात्मा को एक शूद्र जीव को मारने के लिये जन्म मरण युक्त कहने वाले को मूर्खपन से अन्य कुछ विशेष उपमा मिल सकती है और जो कोई कहे कि भक्तजन के उद्धार करने के लिये जन्म लेता है तो भी सत्य नहीं है। क्योंकि जो भक्तजन ईश्वर की आज्ञानुकूल चलते हैं उसके उद्धार करने का पूरा सामर्थ्य ईश्वर में है। क्या ईश्वर पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रादि जगत के बनाने से कंस रावाणादि का वध और गोवर्धनादि का उठाना बड़े कार्य हैं।<br />जो कोई इस सृष्टि में परमेश्वर के कर्मों का विचार करे तो ‘न भूतो न भविष्यति’ ईश्वर के सद्श्य न कोई है न होगा। इस युक्ति से भी ईश्वर का जन्म सिद्ध नहीं होता। जैसे कोई अनंत आकाश को कहे कि गर्भ में आया और मुठ्ठी में भर लिया, ऐसा कहना कभी सच नहीं हो सकता। क्योंकि आकाश अनंत और सब में व्यापक है इससे न आकाश बाहर आता और न भीतर जाता, वैसे ही अनंत सर्वव्यापक परमात्मा के होने से उसका आना जाना कभी सिद्ध नहीं हो सकता। आना और जाना वहाँ हो सकता है जहाँ न हो। क्या परमेशवर गर्भ में व्यापक नहीं था जो कहीं से आया और बाहर नहीं था जो भीतर से निकला। ऐसा ईश्वर के विषय में कहना और मानना विद्याहीनों के सिवाय कौन कह और मान सकेगा। इसलिये परमेश्वर का आना जाना और जन्म-मरण कभी सिद्ध नहीं हो सकता। इसलिये ईसा आदि को ईश्वर का अवतार नहीं समझना चाहिये। वे राग, द्वेष, क्षुधा, तृष्णा, भय, शोक, दुख, सुख, जन्म,मरण आदि गुणायुक्त होने से मनुष्य थे।<br />ईश्वर पाप क्षमा नहीं कर सकता। ऐसा करने से उसका न्याय नष्ट हो जाता है और मनुष्य क्षमा दान मिलने की आशा से महापापी बन सकता है। तथा वह निर्भय एवं उत्साह पूर्वक पाप कर्म करने में संलग्न हो जायगा।vedic wisdomhttps://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-87048801322862795602016-04-11T19:29:15.946-07:002016-04-11T19:29:15.946-07:00ईश्वर के संबंध में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के वि...ईश्वर के संबंध में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के विचार<br /><br /><br />चारों वेदों में ऐसा कहीं नहीं लिखा जिससे अनेक ईश्वर सिद्ध हों। किन्तु यह तो लिखा है कि ईश्वर एक है। देवता दिव्य गुणों के युक्त होने के कारण कहलाते हैं जैसा कि पृथ्वी, परन्तु इसको कहीं ईश्वर तथा उपासनीय नहीं माना है।जिसमें सब देवता स्थित हैं, वह जानने एवं उपासना करने योग्य देवों का देव होने से महादेव इसलिये कहलाता है कि वही सब जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलयकर्ता, न्यायाधीश, अधिष्ठाता है।<br />ईश्वर दयालु एवं न्यायकारी है। न्याय और दया में नाम मात्र ही भेद है, क्योंकि जो न्याय से प्रयोजन सिद्ध होता है वही दया से।<br />दण्ड देने का प्रयोजन है कि मनुष्य अपराध करने से बंध होकर दुखों को प्राप्त न हो, वही दया कहलाती है। जिसने जैसा जितना बुरा कर्म किया है उसको उतना है दण्ड देना चाहिये , उसी का नाम न्याय है। जो अपराध का दण्ड न दिया जाय तो न्याय का नाश हो जाय। क्योंकि एक अपराधी को छोड़ देने से सहस्त्रों धर्मात्मा पुरुषों को दुख देना है। जब एक को छोड़ने से सहस्त्रों मनुष्यों को दुख प्राप्त होता हो तो वह दया किस प्रकार हो सकती है? दया वही है कि अपराधी को कारागार में रखकर पाप करने से बचाना। निरन्तर एवं जघन्य अपराध करने पर मृत्यु दण्ड देकर अन्य सहस्त्रों मनुष्यों पर दया प्रकाशित करना।<br />संसार में तो सच्चा झूठा दोनों सुनने में आते हैं। किन्तु उसका विचार से निश्चय करना अपना अपना काम है। ईश्वर की पूर्ण दया तो यह है कि जिसने जीवों के प्रयोजन सिद्ध होने के अर्थ जगत में सकल पदार्थ उत्पन्न करके दान दे रक्खे हैं। इससे भिन्न दूसरी बड़ी दया कौन सी है? अब न्याय का फल प्रत्यक्ष दीखता है कि सुख दुख की व्याख्या अधिक और न्यूनता से प्रकाशित कर रही है। इन दोनों का इतना ही भेद है कि जो मन में सबको सुख होने और दुख छूटने की इच्छा और क्रिया करना है वह दया और ब्राह्य चेष्टा अर्थात बंधन छेदनादि यथावत दण्ड देना न्याय कहलाता है। दोनों का एक प्रयोजन यह है कि सब को पाप और दुख से प्रथक कर देना।<br />ईश्वर यदि साकार होता तो व्यापक नहीं हो सकता। जब व्यापक न होता तो सर्वाज्ञादि गुण भी ईश्वर में नहीं घट सकते। क्योंकि परिमित वस्तु में गुण, कर्म, स्वभाव भी परिमित रहते हैं तथा शीतोष्ण, क्षुधा, तृष्णा और रोग, दोष, छेदन, भेदन आदि से रहित नहीं हो सकता। अतः निश्चित है कि ईश्वर निराकार है। जो साकार हो तो उसके नाक, कान, आँख आदि अवयवों को बनाने वाला ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा होना चाहिये। क्योंकि जो संयोग से उत्पन्न होता हो उसको संयुक्त करने वाला निराकार चेतन आवश्य होना चाहिये। कोई कहता है कि ईश्वर ने स्वैच्छा से आप ही आप अपना शरीर बना लिया। तो भी यही सिद्ध हुआ कि शरीर बनाने के पूर्व वह निराकार था। इसलिये परमात्मा कभी शरीर धारण नहीं करता। किन्तु निराकार होने से सब जगत को सूक्ष्म कारणों से स्थूलाकार बना देता है।<br />सर्वशक्तिमान का अर्थ है कि ईश्वर अपने काम अर्थात उत्पत्ति, पालन, प्रलय आदि और सब जीवों के पाप पुण्य की यथा योग्य व्यवस्था करने में किंचित भी किसी की सहायता नहीं लेता अर्थात अपने अनंत सामर्थ्य से ही सब अपना काम पूर्ण कर लेता है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है की परमेश्वर वह सब कर सकता है जो उसे नहीं करना चाहिये। जैसे- अपने आपको मारना, अनेक ईश्वर बनाना, स्वयं अविद्वान, चोरी, व्यभिचारादि पाप कर्म कर और दुखी भी हो सकना। ये काम ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव से विरूद्ध हैं।vedic wisdomhttps://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-88249603674330021382016-04-11T19:25:54.453-07:002016-04-11T19:25:54.453-07:00कोई व्यक्ति सड़क पर ट्रक के सामने लेट जाये और कहे क...कोई व्यक्ति सड़क पर ट्रक के सामने लेट जाये और कहे की अगर भगवान है तो मुझे मरने से बचाए अगर मैं नहीं बचा तो भगवान का अस्तित्व नहीं हैं। आप इसे कुतर्क और मूर्खता कह सकते हैं। केरल में भी यही हुआ। पाखंड, प्रपंच, मिथ्या प्रदर्शन के चलते दुर्घटना हुई। उसका दोष मनुष्यों का हैं। न कि भगवान का दोष हैं। और ईश्वर केवल मंदिर में थोड़े ही हैं। सम्पूर्ण विश्व के हर कण में है। मगर वेद ईश्वर उपासना करने के लिए केवल और केवल ह्रदय मंदिर में कहते है। चारों वेद मूर्ति पूजा का समर्थन नहीं करते। अपितु निराकार और सर्वव्यापक ईश्वर का वेद प्रतिपादन करते हैं। इसलिए किसी भी प्राकृतिक घटना अथवा दुर्घटना का दोष ईश्वर को देना गलत है। vedic wisdomhttps://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-4644442264783787182016-04-11T03:21:18.591-07:002016-04-11T03:21:18.591-07:00जी नही मैं मूर्तियों को को भगवान् नही मानता।उसे तो...जी नही मैं मूर्तियों को को भगवान् नही मानता।उसे तो लोगो का विश्वास भगवान् बनाता है।और हाँ आपने बिलकुल ठीक कहाँ भला भगवान् उनकी पूजा करने वालों को क्यों बचाएंगे।ठीक इसी प्रकार सोमनाथ की रक्षा करते हुए 50000 पुजारी मारे गए गए।।।उन्हें कोई भगवान् नही उनकी आत्मरक्षा के लिए किया कर्म ही बचा सकता था।लोग कहते है की सब ऊपर लिख के आया है ईश्वर पे विश्वास करो।।।करो कोई मनुष्य बाढ़ में डूब रहा है।तो उसे ईश्वर की पूजा बचाएगी या उसके द्वारा खुद की रक्षा हेतु किया गया कर्म।।।मुझे नही पता ईश्वर है या नही बस मानने पे मजबूर किया जाता है।बिना जाने क्यों मानना चाहिए।क्या वाकई किसी ने देखा है।।।हाँ बस उसे लोग इसलिए मानते है की वो अकेला नही है।और यही उसे हिम्मत और साहस दिए रहता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04555183873971512809noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-84935191192177683832016-04-10T22:08:01.971-07:002016-04-10T22:08:01.971-07:00विवेक जी आस्तिक होने के जो फायदे गिनाये हैं आपने व...विवेक जी आस्तिक होने के जो फायदे गिनाये हैं आपने वो सब सत्य हैं। लेकिन आप ईश्वरके अस्तित्व को सिद्ध नही कर सके। Jitendra Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/17320352944978186483noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-40684726499113766542016-04-10T21:52:00.816-07:002016-04-10T21:52:00.816-07:00क्या आप मूर्तियों को भगवान् मानते हो।
क्या भगवान्...क्या आप मूर्तियों को भगवान् मानते हो।<br /> क्या भगवान् को आपकी पूजा की जरूरत है जो वो पूजा करने वालों की रक्षा करे।Jitendra Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/17320352944978186483noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-44502387272540857682016-04-10T04:21:17.902-07:002016-04-10T04:21:17.902-07:00मैंने आपका लेख भी पढ़ लिया फिर भी शंका दूर नही हुयी...मैंने आपका लेख भी पढ़ लिया फिर भी शंका दूर नही हुयी।।।आप आज का ही वाक्या देख लीजिये।केरला में आज एक देवी जी के मंदिर में आग लगने से 150लोग मारे गए 400 घायल हुए।वो तो माता के दर्शन को गए थे।उनके मंदिर नवरात्री में।क्या माता की यही इक्छा थी या मात्र एक इतेफाकAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/04555183873971512809noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-48964068751916803952016-04-09T06:37:26.914-07:002016-04-09T06:37:26.914-07:00नमस्ते जी । बढिया लेख ।नमस्ते जी । बढिया लेख ।PRANAB BHATTACHARYAhttps://www.blogger.com/profile/15087447208285405349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-74200134589860918592016-04-09T06:08:10.701-07:002016-04-09T06:08:10.701-07:00आपने मेरा लेख बिना पढ़े ही अपनी शंका पूछ डाली। आपकी...आपने मेरा लेख बिना पढ़े ही अपनी शंका पूछ डाली। आपकी शंका का समाधान इसी लेख में दिया गया है। vedic wisdomhttps://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-73310972174319820522016-04-09T06:04:22.310-07:002016-04-09T06:04:22.310-07:00क्या आपने ईश्वर को देखा है। आपको किसने बताया ईश्वर...क्या आपने ईश्वर को देखा है। आपको किसने बताया ईश्वर होते है।और जिसने बताया क्या उसने ईश्वर देखे है।हम एकदम शून्य चेतना के साथ इस धरती पे आते है।और हमे यही बताया जाता है।यही हमे वो विचार दिए जाते है जो वर्षो से चले आ रहे है।बिना किसी शुजभुज के।हमे सिखाया जाता है की हम हिन्दू है मुसलमान है ईसाई है।और उन्ही धर्मो के रस्ते पे चलते रहते है जिनके रस्ते अलग अलग है।।मैं पाप पुण्य का वियाख्यान नही करूँगा।बस जब कोई सवाल उठता है तो उसे ईश्वर को न मानने पे पाप लगेगा जैसा जवाब देकर छुटकारा प् लिया जाता है।http://www.thelallantop.com/bherant/remembering-bhagat-singh-full-text-of-bhagat-singhs-main-nastik-kyon-hoon/Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04555183873971512809noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-37558962124217389762015-03-16T09:58:51.753-07:002015-03-16T09:58:51.753-07:00धन्यवाद। आपके इस शंका समाधान के लिए!!धन्यवाद। आपके इस शंका समाधान के लिए!!Kirty Bhushanhttps://www.blogger.com/profile/16353878249635505662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-60736611538888158632015-03-13T21:36:53.680-07:002015-03-13T21:36:53.680-07:00Regards
Dr Vivek AryaRegards<br /><br />Dr Vivek Aryavedic wisdomhttps://www.blogger.com/profile/16084853919572775109noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1053318354450384140.post-78791161621373914172015-03-13T08:19:11.363-07:002015-03-13T08:19:11.363-07:00Vivek Ji you have written lucidly with facts and e...Vivek Ji you have written lucidly with facts and examples. Your efforts are appreciable and adorable. Keep on posting such valuable thoughts. Thanx!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14370539367645987729noreply@blogger.com